स्पार्टाकस की अमर कथा : एम वेंकटेश्वर

रोम के सैनिकों की नजरों से बचते हुए वेरीनिया सूली के पास जा कर स्पार्टाकस को अपना शिशु दिखाती हुई कहती है, देखो, तुम्हारा पुत्र आजाद  है।

रोम के लिए यह कहा जाता था कि उसके ऐश्वर्य, वैभव और विलासिता से देवता भी ईर्ष्या करते हैं। लेकिन यह वैभव लाखों श्रमिकों के शोषण और उन पर भयावह अत्याचार पर आधारित था। इस क्रूरता के विरुद्ध विद्रोह स्वाभाविक था। रोमन साम्राज्य के गुलामों ने कम से कम तीन बार विद्रोह किया। विद्रोह की तीसरी लहर का नायक स्पार्टाकस था, जिस पर लिखित हार्वार्ड फास्ट के उपन्यास को क्लासिक का दर्जा हासिल है। इस उपन्यास के आधार पर हम यहाँ विद्रोही स्पार्टाकस के व्यक्तित्व को समझने की कोशिश करते हैं।    

लीबिया की सोने की खदानों में बंधक गुलामों की पीढ़ियाँ जर्जर और रुग्ण हालत में रोमन सैनिकों के अत्याचार तले नारकीय जीवन बिताती रही थीं। इन्हीं असंख्य बेजुबान नर कंकालों में स्पार्टाकस नामक एक बलिष्ठ युवक था जो इन अत्याचारों के बीच उत्कट जिजीविषा धारण किए, कोड़ों की मार से धराशायी बंधकों की सहायता के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर रोमन सैनिकों पर पलटवार करता है। उन दिनों रोम के क्रीड़ांगनों (एरीना) में युद्ध कला में प्रशिक्षित गुलाम लड़ाकों (ग्लेडिएटर) को आपस में लड़वाने का हिंसक खेल प्रचलित था। हजारों की संख्या में रोम के नागरिक, राजवंश तथा सीनेट के सदस्य मौत के इस खूनी खेल को देख कर किलकारियाँ भरते थे। बंधक गुलामों को हिंसक जानवरों से लड़ने के लिए भी छोड़ दिया जाता था। 

लेन्टुलस बेटियाटस नामक गुलामों का एक व्यापारी स्पार्टाकस को खरीद कर कैपुआ नामक गाँव मे स्थित अपने गुलामबाड़े में ले आता है। वहाँ वह अन्य क्रीत गुलामों के साथ उसे भी मौत के खेलों के लिए युद्ध कला में प्रशिक्षित करता है। इन्हीं दिनों रोम से सीनेटर मार्कस लिसिनियस क्रेशस अपने परिवार सहित कैपुआ आ पहुँचता है। वह सीनेट का एक अति महत्त्वपूर्ण शक्तिशाली सदस्य तो था ही,  असाधारण योद्धा भी था। क्रेशस और उसके साथ की विलासी स्त्रियाँ उस गुलामबाड़े में अपने मनपसंद गुलामों को चुन कर उन्हें मरते दम तक लड़वा कर मजा लूटना चाहती हैं। इस द्वंद्व के लिए वे स्पार्टाकस के शारीरिक सौष्ठव से आकर्षित हो कर उसका चयन करती हैं। लकड़ी के गोल क्रीड़ांगन में  क्रेशस  औरर राज परिवार के अन्य सदस्यों के सम्मुख स्पार्टाकस और ड्राबा नामक एक ताकतवर नीग्रो के मध्य रोमांचक मुक़ाबला होता है। स्पार्टाकस परास्त हो कर ड्राबा के त्रिशूल के निशाने पर आ जाता है। दर्शक दीर्घा से ड्राबा के लिए स्पार्टाकस को मार डालने का इशारा किया जाता है। लेकिन ड्राबा स्पार्टाकस को छोड़ कर अपना त्रिशूल सीधे क्रेशस की ओर फेंक कर उसकी ओर लपकता है, पर उसे वहाँ तैनात सैनिक अपने भाले का निशाना बना कर मार डालते हैं।

इस आकस्मिक घटना से हतप्रभ स्पार्टाकस उसे जीवनदान देने वाले नीग्रो की भावना से अभिभूत हो जाता है। यही वह क्षण था जब उसमें रोम की सत्ता के खिलाफ युद्ध करने का साहस जन्म लेता है। उसी गुलामबाड़े  में  वेरीनिया  नामक एक सुंदर  औरत भी बंधक थी। स्पार्टाकस को उससे प्रेम हो जाता है। वेरीनिया भी उसे चाहने लगती है। तभी क्रेशस की नजर वेरीनिया पर पड़ती है। वह उस गुलाम औरत की सादगी भारी सुंदरता पर मोहित हो कर उसे बेटियाटस से खरीद लेता है और उसे रोम के अपने राजप्रासाद को रवाना करवा देता है।

कैपुआ से क्रेशस और उसके परिवार के लौटने के दूसरे दिन ही बेटियाटस वेरीनिया को साथ ले कर रोम की ओर चल पड़ता है। लेकिन उसी समय कैपुआ के उस गुलामबाड़े में स्पार्टाकस और गुलामों और प्रशिक्षक  मार्सिलस  के बीच छोटी-सी झड़प खूनी बगावत में  बादल जाती है। देखते ही देखते स्पार्टाकस और उसके बंधक साथी उस समूचे गुलामबाड़े को ध्वस्त कर वहाँ तैनात सैनिकों को मौत के घाट उतार देते हैं और  वहाँ की सारी संपत्ति लूट कर  घोड़ों पर सवार हो भाग निकलते हैं।

स्पार्टाकस के नायकत्व में एकत्रित बागी गुलामों का यह छोटा-सा समूह गाँवों और शहरों में गुलाम स्त्री-पुरुषों को उनके मालिकों से मुक्त कराने लगता है। बेटियाटस के साथ निकली वेरीनिया भी उसके चंगुल से निकल कर स्पार्टाकस के समूह में शामिल हो जाती है। वह स्पार्टाकस की जीवन संगिनी बन जाती है। स्पार्टाकस अपनी इस जन वाहिनी को रोम की सेनाओं से लड़ने के लिए हथियार चलाने का सैन्य प्रशिक्षण देना शुरू कर देता है। धीरे-धीरे गुलामों का यह काफिला एक विशाल जनवाहिनी का रूप धारण कर लेता है। स्पार्टाकस अपनी इस जनवाहिनी को ले कर पहाड़ों और वन्य प्रदेशों में अस्थायी पड़ाव बना कर आसन्न युद्ध के लिए व्यूह रचना में मग्न हो जाता है। इस सैन्य अभियान के लिए नगरों और गाँवों से स्पार्टाकस के समर्थक सोना-चाँदी और बहुमूल्य वस्तुएँ दान करते जाते हैं।

जैसे ही स्पार्टाकस द्वारा रोमन साम्राज्य के नगरों और ग्रामों को लूटने और उसकी बढ़ती सैन्य शक्ति का समाचार मिलता है, रोम के सीनेट में इस समस्या पर विचार किया जाता है। सीनेट क्रेशस  को रोम की सारी सैन्य शक्ति का सेनाध्यक्ष नियुक्त कर देती है और उसे स्पार्टाकस और उसकी विशाल गुलाम सेना का खात्मा कर देने का आदेश देती है। दूसरी ओर स्पार्टाकस समुद्र मार्ग से रोमन साम्राज्य  मुक्त कराए गए दासों को रोम की सीमाओं से पार बसाने की योजना बनाता है। इसके लिए वह समुद्री लुटेरों से एक सौदा करता है, जिसके अनुसार उन्हें स्पार्टाकस  और उसकी सेना को सागर तट पर पहुँचाना  है। किन्तु  इस योजना की सूचना क्रेशस तक पहुँच जाती है। क्रेशस उन समुद्री लुटेरों को अधिक धन राशि दे कर खरीद लेता है जिसके बाद वे स्पार्टाकस को नौकाएँ को मुहैया कराने के वादे से मुकर जाते हैं। इस तरह स्पार्टाकस विश्वासघात का शिकार हो कर छला जाता है। वह रोम की सेनाओं से युद्ध टालना चाहता था, किन्तु अब उसके पास युद्ध करने के सिवाय कोई दूसरा उपाय नहीं था। उसे मालूम था कि गुलामी की पीड़ा और यातना से मुक्ति पाने के लिए उसके पीछे एक जन सैलाब उसके प्रति सम्पूर्ण निष्ठा के साथ आजादी की कल्पना में डूबा हुआ था।

स्पार्टाकस अब रोमन सेना का मुकाबला करने के लिए व्यूह रचना में लग जाता है। उसके नायकत्व में एकत्रित गुलाम स्त्री-पुरुषों का सैलाब अपने-अपने हथियारों से क्रेशस की सेना से लड़ते-लड़ते कट कर मर जाने के लिए तैयार हैं। भीषण युद्ध होता है। स्पार्टाकस के हजारों लोग मारे जाते हैं। बचे हुए जीवित गुलामों को बंदी बना लिया जाता है। क्रेशस स्पार्टाकस को जीवित पकड़ना चाहता था। वह बंदी गुलामों से स्पार्टाकस की पहचान करने का आदेश देता है। सारा बंदी गुलाम समूह  ‘मैं हूँ स्पार्टाकस, मैं हूँ स्पार्टाकस’ के नारे लगाता है। क्रेशस को घायलों में स्पार्टाकस की पत्नी वेरीनिया अपने नवजात शिशु के साथ दिखाई देती है। क्रेशस उसे तत्काल  उसे राजभवन भिजवा देता है।

क्रेशस ने बहुत पहले  कैपुआ  के गुलामबाड़े में स्पार्टाकस को  गुलाम ड्राबा से द्वंद्व युद्ध में देखा था। अतः वह अनुमान से एक गुलाम को चिह्नित करता है, जो वास्तव में स्पार्टाकस है। एंटोनायनस नामक उसके अत्यंत प्रीति पात्र गुलाम को  भी जंजीरों में जकड़ दिया जाता है।

उस रात क्रेशस वेरीनिया को अपने राजप्रासाद में राजसी वेषभूषा से अलंकृत कर उसके सौन्दर्य का आनंद लेने के लिए उद्यत होता है, किन्तु वेरीनिया स्वयं को स्पार्टाकस की वफादार पत्नी कह कर उसे ठुकरा देती है। इस अपमान से आग बबूला क्रेशस उसी समय आधी रात को बाहर निकल कर स्पार्टाकस और एंटोनायनस को लड़ने के लिए उनके हाथों में तलवार थमाता है और  द्वंद्व युद्ध  में जीवित गुलाम को सूली पर लटकाने की सजा सुना देता है। एंटोनायनस नहीं चाहता था कि उसके  नेता को, जिससे वह पुत्रवत प्रेम करता था, सूली पर कीलों से वेधकर मारा जाए। लेकिन स्पार्टाकस भी एंटोनयनस को यह पीड़ादायक मृत्यु नहीं देना चाहता, इसलिए वह स्वयं एंटोनायनस को द्वंद्व युद्ध में मार डालता है। स्पार्टाकस को राजमार्ग पर सूली पर लटका दिया जाता है। इधर वृद्ध सीनेटर ग्रेचस व्यापारी बेटियाटस को बड़ी धन राशि दे वेरीनिया और उसके शिशु को राजप्रासाद से निकलवा कर आजाद कराने में सफल हो जाता है। वेरीनिया राजमार्ग पर स्पार्टाकस को सूली से लटका हुआ देखती है। रोम के सैनिकों की नजरों से बचते हुए वह सूली के पास जा कर स्पार्टाकस को अपना शिशु दिखाती हुई कहती है, देखो, तुम्हारा पुत्र आजाद है। स्पार्टाकस की खुली आँखें अपने नन्हे-से शिशु को निहारती हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें