अजय खरे |
स्त्री उत्पीड़न का नया रूप
मध्य प्रदेश के सतना जिले की आकांक्षा त्रिपाठी को अपनी मनपसंद शादी करने के चलते करीब चालीस दिनों तक भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। आकांक्षा अभी बीस साल की है। यानी वह दो साल पहले ही बालिग हो चुकी थी। अजयगढ़ निवासी उदय सिंह से उसने शादी कर ली, तो उसके मायका पक्ष ने ससुराल वालों पर भारी दवाब बनाया। मायके द्वारा दाखिल आवेदन के आधार पर सतना की अनुविभागीय दंडाधिकारी द्वारा जारी सर्च वारंट पर आकांक्षा को उसकी ससुराल अजय गढ़ (जिला पन्ना) से 25 जुलाई 2016 को जबरन सतना लाया गया। आकांक्षा ने डिप्टी कलेक्टर सपना त्रिपाठी के न्यायालय में साफ-साफ कहा कि वह मायके जाना नहीं चाहती, उसे उसकी ससुराल भेज दिया जाए, फिर भी उसे सतना के नारी निकेतन में भेज दिया गया।
आकांक्षा बालिग ही नहीं, बल्कि एक शादीशुदा स्त्री भी है, इसके बावजूद प्रशासन की हठधर्मिता के चलते उसे अनावश्यक रूप से चालीस दिनों तक नारी निकेतन में रहना पड़ा। वहाँ उसकी स्थिति कैदी की तरह थी। उससे न कोई मिल सकता था न उसकी आवाज कहीं पहुँच सकती थी। 40 दिनों में आकांक्षा के ससुराल पक्ष के किसी भी सदस्य को एक बार भी नारी निकेतन जा कर उससे मुलाकात करने की अनुमति प्रदान नहीं की गई। आकांक्षा का नारी निकेतन का अनुभव काफी कड़वा रहा। आकांक्षा की सास वंदना सिंह ने डिप्टी कलेक्टर सपना त्रिपाठी के न्यायालय में अर्जी लगाई कि उसे नारी निकेतन से मुक्त किया जाए। लेकिन उनकी अर्जी को अनदेखा किया जाता रहा। आकांक्षा के पक्ष में पेश किए गए आयु संबंधी प्रमाण पत्रों को भी अनदेखा किया गया। मूल दस्तावेज पेश करने के बाद भी उसकी रिहाई संभव नहीं हो पाई। वह अनावश्यक रूप से नारी निकेतन में कैद रखी गई थी। बहू आकांक्षा को मुक्त कराने के लिए वंदना सिंह उनकी पुत्री और सहयोगियों को काफी परेशान होना पड़ा। वंदना सिंह अपनी बहू को ले कर अपने घर अजयगढ़ वापस जाना चाहतीं थीं, लेकिन प्रशासन के अड़ियल रवैए के कारण उनका पूरा परिवार परेशान होता रहा।
जब लड़कियों के
साथ अन्याय या अत्याचार होता है, पुलिस को कार्यवाही करने की जल्दी नहीं
होती। बहुत मुश्किल से और बहुत देर में उसके पाँव उठते हैं, लेकिन
अंतरजातीय विवाह के मामले में पूरा प्रशासन सक्रिय हो उठा। वह शादी को
तुड़वाने पर उतारू था। पुलिस की कोशिश यह दिखाई पड़ती थी कि आकांक्षा किसी
तरह मायके जाने के लिए तैयार हो जाए या फिर उसकी मानसिक स्थिति इतनी खराब
कर दी जाए कि उसे नारी निकेतन या मानसिक चिकित्सालय में रखने का आधार बन
जाए। आकांक्षा रोज कहती थी कि उसे नारी निकेतन में क्यों रखा जा रहा है –
उसे उसकी ससुराल जाने दिया जाए, पर नारी निकेतन की चारदीवारी में उसकी
आवाज सिसक कर रह गई।
2 अगस्त 2016 को आकांक्षा को सतना जिला अस्पताल ले जाने की खबर मिलने पर उसकी सास वंदना सिंह ने उससे मुलाकात की। उन्हें आशंका थी कि प्रशासन उनकी बहू को मानसिक रोगी साबित करने का षड्यंत्र रच कर मामले को दूसरा मोड़ देना चाहता है। 10 अगस्त 2016 को आकांक्षा को उसके बयान के आधार पर मुक्त किया जाना था। इस मामले में आकांक्षा के पति के ममरे भाई रंगकर्मी हीरेन्द्र सिंह (रीवा) की मौजूदगी सतना कलेक्ट्रेट में आए कुछ व्यक्तियों को बिल्कुल रास नहीं आ रही थी। टीआई ने कलेक्ट्रेट परिसर में हीरेन्द्र सिंह के साथ धक्का-मुक्की की और उन्हें जबरिया सिटी कोतवाली ले जा कर लॉकअप में डाल दिया गया। हीरेन्द्र सिंह के थैले में एक कट्टा रख कर उन्हें फँसा देने की धमकी दी गई। कुछ कोरे कागजात पर दस्तखत करवाने के बाद ही उन्हें छोड़ा गया। दूसरी ओर सुरक्षा के नाम पर आकांक्षा को फिर नारी निकेतन, सतना भेज दिया गया था। इस बात को ले कर रीवा जोन के आई जी आशुतोष राय को एक ज्ञापन सौंप कर विरोध दर्ज कराया गया।
आकांक्षा की इच्छा को जान कर अंततः 6 सितंबर 2016 को जबलपुर उच्च न्यायालय ने 6 सितम्बर 2016 को सुन कर उसे नारी निकेतन से मुक्त कर दिया। आकांक्षा अब अपनी ससुराल अजयगढ़ में है। लेकिन यह प्रश्न अपनी जगह बना हुआ है कि जिस प्रगतिशील कदम को प्रशासन का सहयोग मिलना चाहिए, उसकी वजह से उसे इतनी यंत्रणा क्यों सहनी पड़ी? आकांक्षा अडिग न रहती और समाजवादी जन परिषद तथा नारी चेतना मंच ने साथ नहीं दिया होता, तो वह शायद आज भी, हजारों अन्य महिलाओं की तरह, नारी निकेतन में सड़ रही होती।
ajai.khare.rewa@gmail.com
मध्य प्रदेश के सतना जिले की आकांक्षा त्रिपाठी को अपनी मनपसंद शादी करने के चलते करीब चालीस दिनों तक भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। आकांक्षा अभी बीस साल की है। यानी वह दो साल पहले ही बालिग हो चुकी थी। अजयगढ़ निवासी उदय सिंह से उसने शादी कर ली, तो उसके मायका पक्ष ने ससुराल वालों पर भारी दवाब बनाया। मायके द्वारा दाखिल आवेदन के आधार पर सतना की अनुविभागीय दंडाधिकारी द्वारा जारी सर्च वारंट पर आकांक्षा को उसकी ससुराल अजय गढ़ (जिला पन्ना) से 25 जुलाई 2016 को जबरन सतना लाया गया। आकांक्षा ने डिप्टी कलेक्टर सपना त्रिपाठी के न्यायालय में साफ-साफ कहा कि वह मायके जाना नहीं चाहती, उसे उसकी ससुराल भेज दिया जाए, फिर भी उसे सतना के नारी निकेतन में भेज दिया गया।
आकांक्षा बालिग ही नहीं, बल्कि एक शादीशुदा स्त्री भी है, इसके बावजूद प्रशासन की हठधर्मिता के चलते उसे अनावश्यक रूप से चालीस दिनों तक नारी निकेतन में रहना पड़ा। वहाँ उसकी स्थिति कैदी की तरह थी। उससे न कोई मिल सकता था न उसकी आवाज कहीं पहुँच सकती थी। 40 दिनों में आकांक्षा के ससुराल पक्ष के किसी भी सदस्य को एक बार भी नारी निकेतन जा कर उससे मुलाकात करने की अनुमति प्रदान नहीं की गई। आकांक्षा का नारी निकेतन का अनुभव काफी कड़वा रहा। आकांक्षा की सास वंदना सिंह ने डिप्टी कलेक्टर सपना त्रिपाठी के न्यायालय में अर्जी लगाई कि उसे नारी निकेतन से मुक्त किया जाए। लेकिन उनकी अर्जी को अनदेखा किया जाता रहा। आकांक्षा के पक्ष में पेश किए गए आयु संबंधी प्रमाण पत्रों को भी अनदेखा किया गया। मूल दस्तावेज पेश करने के बाद भी उसकी रिहाई संभव नहीं हो पाई। वह अनावश्यक रूप से नारी निकेतन में कैद रखी गई थी। बहू आकांक्षा को मुक्त कराने के लिए वंदना सिंह उनकी पुत्री और सहयोगियों को काफी परेशान होना पड़ा। वंदना सिंह अपनी बहू को ले कर अपने घर अजयगढ़ वापस जाना चाहतीं थीं, लेकिन प्रशासन के अड़ियल रवैए के कारण उनका पूरा परिवार परेशान होता रहा।
आकांक्षा |
उदय |
2 अगस्त 2016 को आकांक्षा को सतना जिला अस्पताल ले जाने की खबर मिलने पर उसकी सास वंदना सिंह ने उससे मुलाकात की। उन्हें आशंका थी कि प्रशासन उनकी बहू को मानसिक रोगी साबित करने का षड्यंत्र रच कर मामले को दूसरा मोड़ देना चाहता है। 10 अगस्त 2016 को आकांक्षा को उसके बयान के आधार पर मुक्त किया जाना था। इस मामले में आकांक्षा के पति के ममरे भाई रंगकर्मी हीरेन्द्र सिंह (रीवा) की मौजूदगी सतना कलेक्ट्रेट में आए कुछ व्यक्तियों को बिल्कुल रास नहीं आ रही थी। टीआई ने कलेक्ट्रेट परिसर में हीरेन्द्र सिंह के साथ धक्का-मुक्की की और उन्हें जबरिया सिटी कोतवाली ले जा कर लॉकअप में डाल दिया गया। हीरेन्द्र सिंह के थैले में एक कट्टा रख कर उन्हें फँसा देने की धमकी दी गई। कुछ कोरे कागजात पर दस्तखत करवाने के बाद ही उन्हें छोड़ा गया। दूसरी ओर सुरक्षा के नाम पर आकांक्षा को फिर नारी निकेतन, सतना भेज दिया गया था। इस बात को ले कर रीवा जोन के आई जी आशुतोष राय को एक ज्ञापन सौंप कर विरोध दर्ज कराया गया।
आकांक्षा की इच्छा को जान कर अंततः 6 सितंबर 2016 को जबलपुर उच्च न्यायालय ने 6 सितम्बर 2016 को सुन कर उसे नारी निकेतन से मुक्त कर दिया। आकांक्षा अब अपनी ससुराल अजयगढ़ में है। लेकिन यह प्रश्न अपनी जगह बना हुआ है कि जिस प्रगतिशील कदम को प्रशासन का सहयोग मिलना चाहिए, उसकी वजह से उसे इतनी यंत्रणा क्यों सहनी पड़ी? आकांक्षा अडिग न रहती और समाजवादी जन परिषद तथा नारी चेतना मंच ने साथ नहीं दिया होता, तो वह शायद आज भी, हजारों अन्य महिलाओं की तरह, नारी निकेतन में सड़ रही होती।
ajai.khare.rewa@gmail.com
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